
इंफोसिस के चेयरमैन और आधार प्रोजेक्ट के जनक नंदन नीलेकणी ने शुक्रवार को कहा कि भारत एक ऐसा देश है, जहां डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की ताकत को मिलाकर बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं। उन्होंने यह बात कार्नेगी इंडिया के ‘ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट – संभावना’ में कही। नीलेकणी ने कहा कि जहां एक तरफ AI को लेकर दुनिया भर में बहुत ज्यादा उम्मीदें और चर्चाएं हैं, वहीं दूसरी तरफ इसे बड़े पैमाने पर लागू करना और ठीक से चलाना अब भी एक बड़ी चुनौती है। भारत में फिलहाल यही सबसे अहम बात है कि कैसे AI का इस्तेमाल आम लोगों की ज़िंदगी आसान और बेहतर बनाने में किया जाए और वो भी कम खर्चे में और पूरे देश की आबादी को ध्यान में रखकर। उन्होंने कहा, “AI हमारे डिजिटल सिस्टम को और बेहतर बनाता है। हमारे यहां जो डिजिटल ढांचा तैयार हुआ है, उसमें अब AI को शामिल किया जा रहा है, जिससे चीज़ें और आसान हो रही हैं। भारत अपनी खास पृष्ठभूमि की वजह से इस मोर्चे पर एक अलग मुकाम हासिल कर सकता है।” भारत में AI को अपनाने की रणनीति साफ है—हर एक छोटे लेकिन असरदार उपयोग पर फोकस किया जाए और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाए कि AI का इस्तेमाल सुरक्षित, निष्पक्ष और ज़िम्मेदारी से हो।
नीलेकणी ने यह भी साफ किया कि AI कोई जादू की छड़ी नहीं है, जिसे घुमाते ही सब बदल जाए। यह काम आसान नहीं है। उन्होंने कहा, “हमेशा की तरह इसमें भी वही सवाल हैं—यूज़र एक्सपीरियंस कैसे बेहतर बनाएं? सिस्टम की ज़रूरतें क्या होंगी? इसे कैसे कंट्रोल करें? और इस पूरी जटिलता को कैसे संभालें? ये सारी चीज़ें हर नई तकनीक में आती हैं और अब हम इन्हीं सवालों का हल AI के मामले में खोज रहे हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि बाकी टेक्नोलॉजी की तुलना में AI की सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें हमें इंसानों की बजाय मशीनों पर भरोसा करना होता है, जो अपने आप निर्णय लेती हैं। “पहले की टेक्नोलॉजीज़ काफी हद तक तयशुदा और अनुमान के दायरे में होती थीं। लेकिन अब हम मशीन से उम्मीद कर रहे हैं कि वो फैसला ले। और इसके लिए हमें टेक्नोलॉजी पर पूरा भरोसा करना पड़ेगा,” उन्होंने कहा। उन्होंने ये भी जोड़ा कि इंसानी गलती को तो लोग अक्सर माफ कर देते हैं, लेकिन जब मशीन से गलती होती है, तो लोग उतने नरम नहीं रहते। इसका उदाहरण उन्होंने सेल्फ-ड्राइविंग कार से दिया, जहां एक एक्सीडेंट के बाद कंपनी को दो साल तक सब कुछ फिर से देखना पड़ता है।
नीलेकणी ने माना कि बड़े स्तर पर AI को लागू करना वाकई में एक बड़ा और लगातार चलने वाला काम है। और इससे भी बड़ी चुनौती यह है कि इसे सरकारी और निजी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अपनाया जा सके।
“अगर सच में हम AI को सही मायनों में काम में लाना चाहते हैं, तो अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। और ये बदलाव कभी आसान नहीं होते। हर इंडस्ट्री में ऐसा हुआ है। फर्क बस इतना है कि इस बार उम्मीदें और प्रचार बहुत ज्यादा हैं, जैसे कोई जादुई चीज़ हो,” उन्होंने कहा। नीलेकणी ने दोहराया कि AI को अपनाना आसान नहीं है। “यह जितना दिखता है, उससे कहीं ज्यादा पेचीदा है,” उन्होंने कहा। साथ ही यह भी बताया कि दुनियाभर में टेक्नोलॉजी को अपनाने की गति तेज हो रही है। उन्होंने कहा, “हर टेक्नोलॉजी साइकिल अब पहले से कम समय में अपनाई जा रही है। पहले भारत में नई चीज़ें धीरे-धीरे आती थीं, लेकिन इस बार उम्मीद है कि AI को हम काफी तेजी से अपनाएंगे।” उन्होंने कहा कि भारत की तकनीकी तरक्की अब उसे दुनिया के बराबर लाकर खड़ा कर सकती है। आधार और UPI जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म ने भारत में पेमेंट्स और ट्रांजैक्शन की दुनिया में जबरदस्त बदलाव किए हैं। इसके चलते अब सिर्फ ग्लोबल कंपनियां ही नहीं, बल्कि भारत की खुद की कंपनियां भी तेज़ी से उभरी हैं। उन्होंने Meesho, PhonePe, PhysicsWallah, Zepto, Rapido जैसी कंपनियों का ज़िक्र किया, जिन्होंने अपने नए आइडियाज से गेम बदल दिया।
नीलेकणी ने कहा, “भारत का DPI ही AI के इस्तेमाल की बुनियाद बनेगा। AI को यहां बड़े स्तर पर लागू करने का जो सपना है, वो पहले से मौजूद डिजिटल ढांचे की वजह से ही संभव हो पाएगा।” आगे उन्होंने कहा कि अब जब लोग आवाज़ और वीडियो के ज़रिए टेक्नोलॉजी से जुड़ रहे हैं, तो इससे AI को एक अरब लोगों तक पहुंचाना और आसान हो जाएगा। उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि आने वाले समय में भारत AI को सबसे ज़्यादा इस्तेमाल करने वाला देश बनेगा। DeepSeek हो या कुछ और, भारत में AI का इस्तेमाल उस स्तर पर होगा जैसा हमने आधार और UPI में देखा।” नीलेकणी ने बताया कि आज भारत में कई इनोवेटिव कंपनियां भारतीय भाषाओं के लिए ओपन-सोर्स AI मॉडल तैयार कर रही हैं, जिससे AI का खर्च बहुत कम हो गया है। उन्होंने कहा कि भारत में महंगे मॉडल नहीं चलेंगे, यहां तो सस्ता और बड़े स्तर पर काम आने वाला AI ही टिकेगा। उन्होंने ये भी कहा कि AI का असली खेल डेटा का है—वो डेटा जो नेचुरल तरीके से इकट्ठा हो, न कि इंटरनेट से चुराकर या किसी और की चीज़ को कॉपी करके। अंत में उन्होंने कहा कि भारत में AI का मकसद सिर्फ काम आसान करना नहीं, बल्कि लोगों की क्षमता और योग्यता को बढ़ाना है। “AI का इस्तेमाल इसलिए नहीं होना चाहिए कि इंसान की स्किल ही खत्म हो जाए। ये बात सिर्फ सुविधा की नहीं है, बल्कि इंसान को और सक्षम बनाने की है,” उन्होंने कहा।