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भोपाल के एम्स में कोरियोनिक विलस सैंपलिंग का सफल परीक्षण, गर्भावस्था में ही आनुवंशिक बीमारी का पता चलेगा

भोपाल AIIMS भोपाल के प्रसूति और स्त्री रोग विभाग ने कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (CVS) प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया है। यह प्रक्रिया भ्रूण में किसी भी आनुवंशिक विकार की पहचान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। कोरियोनिक विलस सैंपलिंग (CVS) एक प्रीनेटल टेस्ट है, जिसमें गर्भवती महिला के प्लेसेंटा से एक छोटा नमूना लिया जाता है। इस नमूने का परीक्षण करके भ्रूण में किसी भी आनुवंशिक समस्या का पता लगाया जा सकता है। आनुवंशिक विकारों का इतिहास डॉक्टरों का कहना है कि यह प्रीनेटल टेस्ट विशेष रूप से उन गर्भवती महिलाओं के लिए उपयोगी है, जिनके परिवार में आनुवंशिक बीमारियों का इतिहास है या जो 35 वर्ष से ऊपर हैं।

भ्रूण के स्वास्थ्य की जानकारी अब वे AIIMS भोपाल में भ्रूण के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकेंगी। डॉ. मनुप्रिया माधवन, जो AIIMS भोपाल में भ्रूण चिकित्सा की सलाहकार हैं, ने इस प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया है। उनके अनुसार, यह प्रक्रिया सुरक्षित और प्रभावी है। डॉ. अजय सिंह, निदेशक, AIIMS भोपाल ने कहा, “CVS का सफलतापूर्वक पूरा होना हमारी संस्थान में भ्रूण चिकित्सा सेवाओं को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।”

लाभ क्या होंगे

  • भ्रूण में आनुवंशिक विकारों की प्रारंभिक पहचान: CVS के माध्यम से गर्भावस्था के प्रारंभिक महीनों में भ्रूण में आनुवंशिक विकारों का पता लगाया जा सकता है।
  • भविष्य के बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार: CVS के जरिए जन्मजात दोषों को रोका जा सकता है। इससे भविष्य में जन्म लेने वाले बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होगा।

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