भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर का ऐलान, लेकिन क्यों ट्रोल हो गए विदेश सचिव विक्रम मिस्री?

सीजफायर के बाद सोशल मीडिया पर मची तूफान: विक्रम मिस्री पर क्यों बरसा गुस्सा?
सोशल मीडिया पर इन दिनों कुछ भी वायरल हो सकता है, और हाल ही में भारत-पाकिस्तान सीजफायर की घोषणा के बाद जो हुआ, वो वाकई चौंकाने वाला था। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने जैसे ही प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस बात की जानकारी दी, सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फूट पड़ा। लेकिन सवाल ये है कि आखिर क्यों?
सीजफायर: एक रणनीतिक कदम या कमजोरी?
10 मई को शाम 5 बजे से लागू हुए सीजफायर को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। कुछ लोगों ने इसे शांति की दिशा में एक रणनीतिक कदम बताया, तो कुछ ने इसे देश की कमजोरी का प्रतीक। लेकिन क्या ये फैसला वाकई में इतना आसान है जितना सोशल मीडिया पर दिख रहा है? इस फैसले के पीछे की जटिल राजनीतिक और सैन्य रणनीतियों को समझना ज़रूरी है। ऐसे में सिर्फ़ एक पहलू देखकर निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है। सरकार की ओर से सीजफायर को लेकर दी गई जानकारी को ध्यान से समझना और फिर अपनी प्रतिक्रिया देना ज़रूरी है। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर फैली अफ़वाहों और गलत जानकारियों से बचकर सतर्क रहना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
विक्रम मिस्री: निशाना क्यों बने?
सीजफायर की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर विक्रम मिस्री को निशाना बनाया गया। लोगों ने उन्हें ट्रोल किया, उनकी निजी जानकारी सार्वजनिक की, और उनकी बेटी को भी नहीं बख्शा। लेकिन क्या ये सही है? विक्रम मिस्री ने सिर्फ़ सरकार का फैसला जनता के सामने रखा था। उन्हें इस फैसले का ज़िम्मेदार ठहराना न केवल अनुचित है, बल्कि लोकतंत्र के लिए भी खतरा है। किसी भी अधिकारी को उसकी ड्यूटी निभाने पर इस तरह बदनाम करना, एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। इस घटना ने यह भी दिखाया कि आजकल सोशल मीडिया पर बिना सोचे-समझे गुस्सा निकालना कितना आम हो गया है। हमें सोशल मीडिया पर अपनी ज़िम्मेदारी समझनी होगी और ऐसे बर्ताव से बचना होगा।
समर्थन में उतरे नेता और पूर्व अधिकारी
सोशल मीडिया पर हुई ट्रोलिंग के बाद कई नेताओं और पूर्व अधिकारियों ने विक्रम मिस्री का समर्थन किया। अखिलेश यादव और असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेताओं ने इस ट्रोलिंग की कड़ी निंदा की और विक्रम मिस्री के काम की तारीफ़ की। पूर्व विदेश सचिव निरुपमा मेनन राव ने भी इस ट्रोलिंग को ‘जहरीली नफरत’ बताया और कहा कि हमें अपने अधिकारियों का साथ देना चाहिए, न कि उन्हें गिराने की कोशिश करनी चाहिए। इन नेताओं और पूर्व अधिकारियों का समर्थन इस बात का प्रमाण है कि विक्रम मिस्री एक ईमानदार और मेहनती अधिकारी हैं और उन्हें इस तरह ट्रोल करना पूरी तरह गलत है।