छत्तीसगढ़

महुआ बचाओ अभियान से मिली राष्ट्रीय पहचान: मनेंद्रगढ़ DFO मनीष कश्यप को ‘Nexus of Good’ अवॉर्ड, 30,000 महुआ पौधों के संरक्षण से आदिवासी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को मिला नया जीवन

नई दिल्ली/ रायपुर|  मनेंद्रगढ़ के वनमंडलाधिकारी (DFO) मनीष कश्यप को महुआ बचाओ अभियान के लिए ‘Nexus of Good Foundation’ अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। नई दिल्ली में आयोजित पुरस्कार समारोह में Nexus of Good Foundation के संस्थापक अनिल स्वरूप (सेवानिवृत्त आईएएस) और प्रकाश सिंह (सेवानिवृत्त आईपीएस एवं पद्मश्री विजेता) ने उन्हें यह सम्मान प्रदान किया।



इस वर्ष देशभर से कुल 120 विभिन्न अधिकारियों और एनजीओ ने अपनी अभिनव पहल के लिए आवेदन किया था, जिसमें से 22 विजेताओं का चयन किया गया। चयन प्रक्रिया के लिए यूपीएससी के पूर्व चेयरमैन दीपक गुप्ता और वरिष्ठ अधिकारियों की ज्यूरी गठित की गई थी। छत्तीसगढ़ से इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए IFS मनीष कश्यप और एनजीओ लैंग्वेज एंड लर्निंग फाउंडेशन का चयन किया गया।

महुआ बचाओ अभियान की अनूठी पहल

महुआ पेड़ की घटती संख्या को लेकर चिंता के मद्देनज़र मनेंद्रगढ़ वन मंडल में महुआ बचाओ अभियान की शुरुआत की गई। मनीष कश्यप के नेतृत्व में पहली बार गाँव के बाहर खाली पड़ी ज़मीन और खेतों में महुआ के पौधे लगाए जा रहे हैं। इन पौधों की सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड भी लगाए जा रहे हैं, जिससे ग्रामीणों में विशेष उत्साह देखने को मिला है।

अब तक 47 गाँवों में 4,500 ग्रामीणों के खेतों और खाली ज़मीन पर 30,000 महुआ के पौधे लगाए जा चुके हैं। महुआ पेड़ की खासियत यह है कि 10 वर्षों में यह पूरी तरह परिपक्व हो जाता है। एक महुआ का पेड़ औसतन 2 क्विंटल फूल और 50 किलो बीज प्रदान करता है, जिससे लगभग 10,000 रुपये की आय होती है। इस पहल से महुआ का उत्पादन बढ़ेगा, ग्रामीणों की आय में सुधार होगा और पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।

महुआ पेड़ों की घटती संख्या: एक गंभीर चुनौती

महुआ पेड़ की घटती संख्या के पीछे प्रमुख कारण है जंगल के बाहर पुनरुत्पादन की कमी। ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ के पौधों को आग लगाकर नष्ट कर दिया जाता है, जिससे नए पौधों का विकास रुक जाता है। महुआ के बीजों का अधिक संग्रहण भी पेड़ के पुनरुत्पादन में बाधा बनता है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा और बस्तर अंचल में केवल पुराने महुआ पेड़ बचे हैं, जबकि छोटे और मध्यम आयु वर्ग के पेड़ लगभग समाप्त हो चुके हैं।

महुआ पेड़ की औसत आयु 60 वर्ष होती है। यदि इनके संरक्षण और पुनरुत्पादन पर जल्द ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले समय में यह बहुमूल्य पेड़ समाप्त हो सकते हैं।

महुआ का आदिवासी जीवन में महत्व

महुआ का पेड़ आदिवासी समाज के लिए आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। महुआ का फूल, बीज, छाल और पत्तियाँ सभी उपयोगी होती हैं और आदिवासियों के आय का मुख्य स्रोत हैं। भारत के उत्तर, दक्षिण और मध्य के 13 राज्यों में महुआ पाया जाता है।

महुआ बचाओ अभियान, न केवल पर्यावरण संरक्षण का एक मजबूत कदम है, बल्कि यह आदिवासी समाज के आर्थिक विकास में भी सहायक सिद्ध होगा।

महुआ बचाओ अभियान के लिए इस राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार से सम्मानित होना छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है।

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