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PM मोदी की सख़्ती के आगे झुका अमेरिका! 26/11 का गुनहगार राणा अब भारत के हवाले

तहव्वुर राणा प्रत्यर्पण: 17 साल बाद आखिर इंसाफ की एक और राह खुली 17 साल बाद आखिर वो दिन आ ही गया, जब 26/11 मुंबई हमलों के एक और गुनहगार को उसके अंजाम तक पहुंचाने का रास्ता साफ हुआ। अमेरिका से तहव्वुर हुसैन राणा को भारत लाया जा रहा है। ये सिर्फ एक आरोपी की वापसी नहीं है, बल्कि भारत की जबरदस्त कूटनीतिक जीत और पीएम नरेंद्र मोदी की इंटरनेशनल रणनीति का बड़ा उदाहरण है। ‘मोदी है तो मुमकिन है’—अब ये महज नारा नहीं, बल्कि 26/11 के पीड़ितों को इंसाफ मिलने की उम्मीद बन चुका है। जहां पहले की सरकारें इस केस को आगे नहीं बढ़ा सकीं, वहीं मोदी सरकार ने उसे अंजाम तक पहुंचाया। चलिए, जानते हैं कि पहले क्या-क्या हुआ और कैसे अब बाज़ी पलटी। 2008 का हमला और कांग्रेस सरकार की नाकामी 26 नवंबर 2008 को जब मुंबई दहल उठी थी, उस वक्त देश की सत्ता कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA सरकार के हाथ में थी। प्रधानमंत्री थे डॉ. मनमोहन सिंह। हमला होते ही कसाब पकड़ा गया, उसे ट्रायल मिला और बाद में फांसी भी दी गई, लेकिन हमले के बाकी मास्टरमाइंड पाकिस्तान में खुले घूमते रहे। 2011 में अमेरिका ने तहव्वुर राणा को कुछ आरोपों से बरी कर दिया और डेनमार्क पर साजिश रचने के केस में दोषी माना। कांग्रेस सरकार इस दौरान राणा को भारत लाने में पूरी तरह नाकाम रही। न मजबूत सबूत पेश हुए, न कूटनीतिक दबाव बनाया गया।

मोदी सरकार के आते ही रुख बदला नरेंद्र मोदी ने 2014 में पीएम पद की शपथ ली और तभी से आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई। 2018 में भारत ने अमेरिका को राणा के प्रत्यर्पण का औपचारिक अनुरोध भेजा और लगातार दबाव बनाए रखा। 2020 में राणा को हेल्थ ग्राउंड्स पर छोड़ा गया, लेकिन भारत की अपील पर उसे फिर से गिरफ्तार किया गया। मई 2023 में अमेरिकी कोर्ट ने राणा को भारत भेजने की मंजूरी दे दी और अगस्त 2024 में अपील कोर्ट ने भी फैसले को सही ठहराया। जनवरी 2025 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने राणा की याचिका खारिज कर दी। अब राणा भारत आ रहा है—ये दिखाता है कि अब भारत सिर्फ मांग नहीं करता, उसकी बात सुनी भी जाती है।

कांग्रेस की नाकामी पर एक नजर

  • पाकिस्तान पर ढीला दबाव: पाकिस्तान लगातार हाफिज सईद और ज़की-उर-रहमान लखवी जैसे आतंकियों को पनाह देता रहा, लेकिन भारत की ओर से बस औपचारिक विरोध दर्ज होता रहा।
  • राणा का प्रत्यर्पण न हो पाना: कांग्रेस सरकार अमेरिका में मजबूत केस पेश नहीं कर पाई, नतीजा ये हुआ कि 2011 में कोर्ट ने उसे 26/11 मामले में बरी कर दिया।
  • इंटेलिजेंस में कमी: 2008 से पहले रॉ और IB के पास लश्कर की हरकतों की जानकारी थी, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया।
  • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमजोर पैरवी: अमेरिका, ब्रिटेन और इज़रायल ने तो हमले की निंदा की थी, लेकिन भारत की सरकार उनके साथ कोई ठोस रणनीति नहीं बना सकी।

मोदी सरकार ने क्या अलग किया?

  • 2018: NIA ने नए सबूतों के साथ केस तैयार किया।
  • 2020: भारत के अनुरोध पर अमेरिका ने राणा को फिर से अरेस्ट किया।
  • 2023-24: अमेरिकी कोर्ट ने भारत प्रत्यर्पण को हरी झंडी दी।
  • 2025: अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम अपील भी खारिज कर दी।

इन सबके चलते आज अमेरिका जैसे देश ने भारत की जांच और सबूतों पर भरोसा जताया है। ये भारत की बढ़ती ताकत और भरोसे की मिसाल है। अब पाकिस्तान की बारी जब कसाब को फांसी हुई थी, पाकिस्तान ने तो ये तक कह दिया था कि वो उसका नागरिक नहीं है। लेकिन तहव्वुर राणा सिर्फ एक आतंकी नहीं, बल्कि पूरी प्लानिंग जानने वाला शख्स है। उसकी गवाही से पाकिस्तान के ISI, लश्कर और दूसरे नेटवर्क की परतें खुल सकती हैं। ऐसे में अब पाकिस्तान के लिए जवाब देना आसान नहीं होगा।

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