
महाकुंभ 2025: नागा साधु बनने की दिलचस्प कहानियां और अनूठी प्रक्रिया प्रयागराज के महाकुंभ 2025 में 13 अखाड़ों के हजारों नागा साधु डेरा डाल चुके हैं। इस बार 20 से 25 हजार नए लोग नागा साधु बनने जा रहे हैं। नागा साधु बनना कोई आसान फैसला नहीं है। इसके पीछे संघर्ष, त्याग और कई अनकही कहानियां छिपी होती हैं।
शुभम मिश्रा: सांसारिक जीवन छोड़ नागा साधु बनने की कहानी
24 साल के शुभम मिश्रा, जो इस बार जूना अखाड़े के नागा साधु बने हैं, उनकी कहानी सबका ध्यान खींच रही है। दीक्षा के दौरान शुभम ने अपनी पुरानी जिंदगी को याद करते हुए कहा, “अगर मैं घर में रहता, तो दस लोगों को मार देता या खुद को खत्म कर लेता। प्यार में मिली नाकामी और नौकरी को लेकर तनाव ने मुझे ये राह चुनने पर मजबूर कर दिया। अब नागा साधु बनकर जो सुकून और खुशी महसूस हो रही है, वो शब्दों में नहीं बता सकता।”
शुभम ने अपने परिवार, माता-पिता और भाई-बहनों को छोड़कर पूरी तरह से संन्यास का रास्ता अपना लिया।
महाकुंभ में महिलाओं की भागीदारी का बढ़ना
महाकुंभ 2025 की खास बात यह है कि इस बार महिलाओं की भी बढ़-चढ़कर भागीदारी देखने को मिली है। जूना अखाड़े ने करीब 100 महिलाओं को नागा साधु बनने की दीक्षा दी है। इसके साथ ही निरंजनी अखाड़े ने भी 500 से ज्यादा पुरुषों को नागा साधु बनाया है।
कैसे बनते हैं नागा साधु?
नागा साधु बनने का रास्ता कठिन और पूरी तरह से अनुशासन में बंधा होता है।
- विजया हवन और पिंडदान: शुरुआत में साधक अपने और अपने पूर्वजों का पिंडदान करते हैं।
- गंगा स्नान और 108 कसमें: गंगा में स्नान के बाद 108 शपथ ली जाती हैं, जिसमें परिवार और सांसारिक जीवन को पूरी तरह छोड़ने का संकल्प लिया जाता है।
- धर्म रक्षा का संकल्प: साधक गंगा किनारे खड़े होकर सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने का संकल्प लेते हैं। अगर कोई साधक इस संकल्प को तोड़ता है, तो उसे अखाड़े से बाहर कर दिया जाता है।
महिलाओं के नागा साधु बनने की प्रक्रिया
महिलाओं की दीक्षा प्रक्रिया पुरुषों की तरह ही होती है। सबसे पहले उनका मुंडन संस्कार किया जाता है, फिर गंगा स्नान कराया जाता है। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ दीक्षा दी जाती है। महिलाओं को भी 108 कसमें दिलाई जाती हैं, जिसमें सांसारिक मोह-माया से दूर रहने का वचन शामिल होता है।
संगम घाट पर पिंडदान और साधना
नागा साधु बनने से पहले संगम घाट पर साधक पिंडदान करते हैं। इसमें 17 पिंड बनाए जाते हैं—16 उनकी सात पीढ़ियों के लिए और एक उनके स्वयं के लिए। यह प्रक्रिया नागा साधु बनने के सफर का अहम हिस्सा होती है।
महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि जी का बयान
आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि जी महाराज ने बताया कि नागा साधु बनने की कठिन साधना मौनी अमावस्या (29 जनवरी) तक जारी रहेगी। इसी दिन साधकों को नागा साधु की अंतिम दीक्षा दी जाएगी।
जूना अखाड़े की भूमिका
13 अखाड़ों में जूना अखाड़ा सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण अखाड़ा है। इसके पास करीब 5 लाख नागा साधु और महामंडलेश्वर हैं। इस बार महाकुंभ में जूना अखाड़ा 20-25 हजार नए नागा साधुओं को दीक्षा देने का काम कर रहा है।
नागा साधु: सनातन धर्म के रक्षक
नागा साधु अपने तप, त्याग और समर्पण के लिए जाने जाते हैं। वे पूरी तरह से धर्म और समाज की सेवा के लिए खुद को समर्पित कर देते हैं। इस बार महाकुंभ में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी ने नागा साधुओं के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है।