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बांग्लादेश में बदलती पहचान: ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा छीना गया, अब नए सिरे से परिभाषित हो रहा है इतिहास

बांग्लादेश का इतिहास: एक नया अध्याय?

बांग्लादेश के इतिहास में एक बड़ा बदलाव आया है जिससे देश भर में बहस छिड़ गई है। सरकार ने हाल ही में राष्ट्रीय स्वतंत्रता सेनानी परिषद अधिनियम में बदलाव किया है, जिसमें ‘राष्ट्रपिता’ शेख मुजीबुर रहमान का नाम हटा दिया गया है। इससे देश के इतिहास और राजनीति पर गहरा असर पड़ने की आशंका है।

मुजीबुर रहमान का नाम क्यों हटाया गया?

सरकार के इस फैसले से मुजीबुर रहमान की 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। अब आधिकारिक तौर पर 1971 के युद्ध को बांग्लादेश की जनता का आंदोलन बताया जाएगा, न कि मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में लड़ा गया युद्ध। इससे देश के इतिहास को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है।

मुक्ति संग्राम के सहयोगी कौन?

मुजीबनगर की निर्वासित सरकार से जुड़े नेताओं को अब ‘मुक्ति संग्राम के सहयोगी’ कहा जाएगा, न कि ‘स्वतंत्रता सेनानी’। यह बदलाव उनके आधिकारिक दर्जे में कमी को दर्शाता है और स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की परिभाषा में बदलाव की ओर इशारा करता है। यह फैसला कई लोगों को नागवार गुज़रा है।

नए स्वतंत्रता सेनानी कौन होंगे?

नए कानून के अनुसार, 26 मार्च से 16 दिसंबर 1971 के बीच युद्ध प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले, पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लड़ने वाले, या भारत में प्रशिक्षण लेने वाले सभी नागरिकों को स्वतंत्रता सेनानी माना जाएगा। इसमें कई सैन्य और अर्द्धसैन्य बलों के सदस्य भी शामिल हैं। इससे स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वालों की परिभाषा का दायरा बढ़ गया है।

महिलाओं और स्वास्थ्यकर्मियों का योगदान

युद्ध के दौरान प्रताड़ित महिलाओं (बीरांगना) और घायल सैनिकों की सेवा करने वाले डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल सहायकों को भी स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिया जाएगा। यह निर्णय इन वीर महिलाओं और स्वास्थ्यकर्मियों के योगदान को मान्यता देता है।

पाठ्यपुस्तकों में बदलाव

2025 के लिए जारी नई पाठ्यपुस्तकों में भी बदलाव किया गया है। अब स्वतंत्रता की घोषणा का श्रेय जिया उर रहमान को दिया जा रहा है, न कि मुजीबुर रहमान को। यह बदलाव बांग्लादेश के इतिहास की व्याख्या में एक बड़ा बदलाव है और इतिहास को लेकर बहस को और तेज कर सकता है।

क्या इतिहास फिर से लिखा जा रहा है?

इन बदलावों से यह सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश अपने इतिहास को फिर से लिखने की कोशिश कर रहा है? मुजीबुर रहमान की भूमिका को कम करके आंकना सिर्फ एक कानूनी निर्णय नहीं, बल्कि एक राजनीतिक और वैचारिक बदलाव है जिसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

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