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‘द डिप्लोमैट’ मूवी रिव्यू: दमदार कहानी लेकिन औसत फिल्म, जॉन अब्राहम के लिए देखें या छोड़ दें?

फिल्म रिव्यू: द डिप्लोमैट

कास्ट: जॉन अब्राहम, सादिया खतीब, शारिब हाशमी, कुमुद मिश्रा, रेवती
निर्देशक: शिवम नायर
रेटिंग: ⭐⭐✨ (2.5/5)

जॉन अब्राहम फिर से देशभक्ति वाली फिल्म में

‘बाटला हाउस’ के बाद जॉन अब्राहम लगातार देशभक्ति से जुड़ी फिल्में कर रहे हैं। कुछ चल जाती हैं, कुछ नहीं। अगर ‘बाटला हाउस’ में उनका काम दमदार था, तो ‘मद्रास कैफे’ का क्रेडिट कहीं ना कहीं शूजित सरकार को जाता है। उनकी पिछली फिल्म ‘वेदा’ को अगर कमजोर कह दिया जाए, तो कोई गलत नहीं होगा। अब इस कड़ी में जॉन लेकर आए हैं ‘द डिप्लोमैट’, जो सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है।

कहानी – वही, जो आप पहले से जानते हैं

फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है, तो अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं। उजमा नाम की एक भारतीय लड़की मलेशिया में रहती है और अपने बच्चे के इलाज के लिए परेशान है। इसी दौरान उसकी सोशल मीडिया पर एक पाकिस्तानी शख्स से पहचान होती है, जो प्यार में बदल जाती है। लेकिन जब वह पाकिस्तान पहुंचती है, तो उसे पता चलता है कि वो आदमी फ्रॉड है। वहां से निकलना उसके लिए नामुमकिन सा हो जाता है। किसी तरह वह पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास पहुंचती है, जहां उसे डिप्लोमैट जे.पी. सिंह मिलते हैं। कहानी का बाकी हिस्सा आपको पहले से ही पता होगा।

जॉन का अभिनय – सधा हुआ लेकिन अलग नहीं

इस फिल्म में जॉन अब्राहम ने डिप्लोमैट जे.पी. सिंह का किरदार निभाया है। उनका अभिनय संतुलित है, बिना किसी जरूरत से ज्यादा हीरोगिरी के। यह डायरेक्टर की समझदारी भी है, क्योंकि बॉलीवुड में अकसर देशभक्ति वाली फिल्मों में हीरो को हद से ज्यादा दमदार दिखाने की कोशिश की जाती है।

सादिया खतीब ने उजमा का किरदार निभाया है। उनके पास इमोशनल सीन थे, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के कारण वह दर्शकों को उतना प्रभावित नहीं कर पाईं। उन्होंने कोशिश की, लेकिन स्क्रिप्ट ने उनका साथ नहीं दिया। रेवती ने सुषमा स्वराज का किरदार निभाया है, उनका रोल छोटा लेकिन असरदार है। कुमुद मिश्रा भी ठीक हैं, लेकिन उनके पास करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था।

लेखन औसत, निर्देशन बेहतर

रितेश शाह ने फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी है, जो पहले कई दमदार फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। लेकिन इस बार उनकी लेखनी कुछ खास नहीं रही। खासतौर पर सादिया के किरदार को बहुत ही साधारण तरीके से लिखा गया, कोई ऐसा सीन नहीं जो लंबे समय तक याद रहे। हालांकि, उन्होंने कुछ अच्छे डायलॉग जरूर दिए हैं।

निर्देशक शिवम नायर की फिल्मोग्राफी में ‘नाम शबाना’, ‘स्पेशल ऑप्स’ और ‘मुखबिर’ जैसी अच्छी फिल्में शामिल हैं। इस फिल्म में भी उन्होंने संतुलित काम किया है। हालांकि, फिल्म में कुछ नया नहीं है, लेकिन निर्देशन अच्छा है।

सिनेमाघर में देखें या ओटीटी पर?

फिल्म होली के दिन रिलीज हो रही है, जिसका असर बॉक्स ऑफिस पर जरूर पड़ेगा। त्योहार के दिन नॉर्थ इंडिया में दर्शक आमतौर पर फिल्मों से दूर रहते हैं। ऊपर से, फिल्म की पायरेटेड कॉपी पहले से ही टेलीग्राम पर मौजूद है, जिससे कलेक्शन पर और असर पड़ सकता है।

क्या यह फिल्म सिनेमाघर में जाकर देखने लायक है?
अगर आप जबरदस्त एक्शन, थ्रिल और नई कहानी की उम्मीद कर रहे हैं, तो आपको निराशा हो सकती है। लेकिन अगर आप जॉन अब्राहम के फैन हैं या इस तरह की कहानियों में दिलचस्पी रखते हैं, तो एक बार देख सकते हैं। वरना, ओटीटी पर रिलीज होते ही आराम से घर पर देखना बेहतर रहेगा।

आपने फिल्म देखी? अपनी राय बताइए!

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