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समरसता के संकल्प के साथ सम्पन्न हुई स्नेह यात्रा…..

प्रदेश के सभी जिलों में 16 अगस्त से देश के प्रतिष्ठित पूज्य संतों के नेतृत्व में शुरू हुई स्नेह यात्रा का 11 दिवस बाद शनिवार 26 अगस्त को अभूतपूर्व समापन हुआ। सभी जिलों की बस्तियों में भव्य और दिव्य समारोह में आमजन ने मुक्त कंठ से यात्रा की प्रशंसा करते हुए प्रदेश शासन का आभार जताया। संतों ने कहा यात्रा में वंचित वर्गों से मिला स्नेह यादगार रहा। संत और समाज का यह मिलन सकारात्मक सार्थक समाजिक परिवर्तन की प्रेरणा बनेगा। संतों ने कहा यह विराम है अंत नहीं। सामाजिक बदलाव का यह अभियान सतत जारी रहेगा। ज्ञातव्य हो कि 11 दिवसीय स्नेह यात्रा का आयोजन सभी वर्गो में भेदभाव समाप्त कर पूज्य संतों के नेतृत्व में समरसता का भाव विकसित करने के लक्ष्य से किया गया था। यात्रा को मिलने वाला जन-समर्थन और आमजन की सहभागिता अभूतपूर्व थी। 

स्नेह यात्रा का भव्य और दिव्य समापन

जिस प्रकार स्नेह यात्रा अपने संचालन दिवसों में यादगार रही उसी प्रकार समापन समारोह भी भव्य और दिव्य रहे। समापन समारोह में यात्रा में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से सहयोग देने वाले लोगों को राज्य स्तरीय प्रमाण-पत्र से सम्मानित किया गया। पूज्य संतों के प्रति भी आभार व्यक्त करने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृतज्ञता पत्र प्रेषित किया है। समापन समारोह में सभी वर्गों के कार्यकर्ताओं को भी सम्मानित किया गया। स्थानीय संगीत मंडलियों द्वारा प्रेरणा गीतों की प्रस्तुति की गई। समापन समारोह का मुख्य आकर्षण सभी की सहभागिता से एकत्रित अन्न से बने सहभोज और सामूहिक संकीर्तन रहें, जिसमें आयोजक ग्राम के साथ आसपास के ग्रामीण जनों ने भी सहभागिता की। 

सभी 53 जिलों में 72 प्रतिष्ठित संतों ने किया यात्रा का नेतृत्व

स्नेह यात्रा का मूल उददेश्य समाज में समरसता और सद्भावना का विकास करना था।  53 जिलों के चिंहित सेवा बस्तियों में एक पूज्य संत के नेतृत्व में यात्रा पहुँचती थी। संतों का पारंपरिक स्वागत बस्ती के लोगों द्वारा किया जाता था। संत घर-घर जाते और लोगों से मिलते थे। मेल-मुलाकात के बाद आखिर में बस्ती में सब एक स्थान पर एकत्रित हो जाते, मंगलाचरण के साथ रक्षा-सूत्र बंधन, संक्षिप्त उद्बोधन के बाद प्रसाद वितरण होता था। यह सिलसिला चार-पाँच गाँव में चलता था। दोपहर भोज के समय सामूहिक संकीर्तन और सहभोज होता था। इसमें पूज्य संत भारतीय संस्कृति में निहित समतामूलक समाज की भावना को समरसता के मूल विचार के रूप में ऐतिहासिक सांस्कृतिक उदाहरणों से प्रस्तुत करते थे।

स्नेह यात्रा के नवाचार

स्नेह यात्रा आडम्बर और शोर-शराबे से दूर वर्गों में सद्भावना और समरसता जगाने का एक ईमानदार और गंभीर प्रयास था, यही कारण है कि इस यात्रा को जन-समुदाय की स्व-स्फूर्त सहभागिता मिली। यात्रा प्लास्टिक के प्रयोग से दूर रही। टेंट हाउस के पंडाल, कालीनों से दूर, चौपाल पर संवाद आयोजित हुए। पत्तों के बंधनवार और तोरण लगाए गए। सहभोज में कुल्हड़ और देशी दोना-पत्तल का उपयोग हुआ। सबने मिलकर अन्न संग्रह किया, मिलकर बनाया और साथ-साथ संत सानिध्य में प्रसाद ग्रहण किया। संत जनों ने वंचित वर्गों को स्वयं परोसकर खिलाया। संत जन बस्ती में घर-घर गए। उन्हें धार्मिक साहित्य, रूद्धाक्ष और तुलसी माला भेंट की। घर में स्वल्पाहार ग्रहण किया। देव स्थलों पर दीप जलाया और सदियों की दूरियों को पल भर में पाट दिया। 

योजना, आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग और संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वाधान में 16 अगस्त से शुरू हुई स्नेह यात्रा का संयोजन मध्यप्रदेश जन-अभियान परिषद के माध्यम से किया गया। यात्रा में अखिल विश्व गायत्री परिवार, रामचंद्र मिशन, योग-आयोग संस्थान, पतंजलि योगपीठ एवं आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास सहभागी संगठन रहें। इसके अतिरिक्त स्थानीय स्तर पर कार्यरत धार्मिक और सांस्कृतिक संगठनों ने भी यात्रा में बढ़-चढ़कर योगदान दे यात्रा को पूर्णता प्रदान की। 

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