अंतराष्ट्रीय
Trending

बांग्लादेश में तोड़फोड़ और आगजनी, अवामी लीग नेताओं के घरों पर हमला

बांग्लादेश में प्रदर्शनकारियों का उग्र विरोध, शेख हसीना और उनके परिवार के घरों पर हमले बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शन तेज होते जा रहे हैं। देश की सत्ता से बेदखल की गई पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के कई नेताओं के घरों पर हमला किया गया, और राजधानी ढाका में बांग्लादेश के संस्थापक नेता शेख मुजीबुर रहमान के स्मारक को तोड़ने की कार्रवाई जारी रही। बुधवार रात, प्रदर्शनकारियों ने सोशल मीडिया पर “बुलडोजर जुलूस” के आह्वान के बाद ढाका के धनमंडी इलाके में स्थित शेख मुजीबुर रहमान के घर, जो अब एक स्मारक है, के बाहर रैली निकाली। इस भीड़ ने घर में आग लगा दी। देश के अन्य हिस्सों से भी आगजनी की घटनाएं सामने आईं।

“इमारतें गिराई जा सकती हैं, लेकिन इतिहास नहीं,” हसीना की प्रतिक्रिया

बुधवार रात अपने संबोधन में, शेख हसीना ने कहा, “वे एक इमारत को गिरा सकते हैं, लेकिन इतिहास को नहीं मिटा सकते… लेकिन उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि इतिहास अपना बदला लेता है।” इस दौरान, एक खुदाई मशीन को शेख मुजीब के घर को गिराते हुए देखा गया। इसके साथ ही, अवामी लीग के विभिन्न संगठनों के कार्यालयों वाले एक अन्य भवन को भी तोड़ा गया। प्रदर्शनकारियों ने शेख मुजीब के चित्रों और मूर्तियों को भी नुकसान पहुंचाया। बुधवार रात को ही हसीना के दिवंगत पति वाजेद मियां के धनमंडी स्थित ‘सुधा सदन’ घर को भी आग के हवाले कर दिया गया। हसीना सरकार के 5 अगस्त को सत्ता से हटाए जाने के बाद से ही यह घर खाली था।

अन्य शहरों में भी हिंसा फैली

ढाका में हुई हिंसा के बाद बांग्लादेश के अन्य हिस्सों में भी विरोध प्रदर्शन भड़क उठे।

  • खुलना शहर में हसीना के चचेरे भाइयों, शेख हेलाल उद्दीन और शेख सलाहुद्दीन ज्वेल के घरों को तोड़ दिया गया।
  • ढाका यूनिवर्सिटी के बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान हॉल से उनका नाम हटा दिया गया।
  • कुश्तिया में पूर्व सांसद महबूबुल आलम हनीफ और अवामी लीग के अध्यक्ष सदर खान के घरों को भी निशाना बनाया गया।
  • चटगांव में प्रदर्शनकारियों ने मशाल जुलूस निकालकर हसीना के भाषण का विरोध किया और वहां भी मुजीबुर रहमान के चित्रों को विकृत कर दिया गया।
  • रंगपुर, मयमनसिंह और बरिशाल में भी मुजीबुर रहमान की मूर्तियों को नुकसान पहुंचाया गया।

इस हिंसा की शुरुआत “एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट्स मूवमेंट” के नेता हसनत अब्दुल्ला के एक फेसबुक पोस्ट से हुई, जिसमें उन्होंने लिखा, “आज रात, बांग्लादेश तानाशाही के तीर्थस्थल से मुक्त होगा।”

हसीना की भावनात्मक अपील

अपने संबोधन में शेख हसीना ने प्रदर्शनकारियों को चुनौती देते हुए कहा, “वे अभी तक राष्ट्रीय ध्वज, संविधान और हमारी आज़ादी को नष्ट करने की ताकत नहीं जुटा पाए हैं, जिसे लाखों शहीदों ने अपने खून से हासिल किया था।” उन्होंने 1971 के मुक्ति संग्राम को याद करते हुए कहा कि तब पाकिस्तानी सेना ने भी उनके घर को लूटा था, लेकिन इसे नष्ट नहीं किया। “आज इस घर को गिराया जा रहा है। इसने क्या अपराध किया था? वे इस घर से इतने डरे हुए क्यों थे?… मैं देश की जनता से न्याय की मांग करती हूं। क्या मैंने तुम्हारे लिए कुछ नहीं किया?” उन्होंने भावुक स्वर में कहा।

नए संविधान और राष्ट्रगान बदलने की मांग

छात्र आंदोलन के प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश के 1972 के संविधान को हटाने का संकल्प लिया है। उन्होंने इसे “मुजीबवादी संविधान” करार देते हुए इसे समाप्त करने का ऐलान किया है। वहीं, कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने राष्ट्रगान को बदलने का भी सुझाव दिया है।

सरकार की पहली प्रतिक्रिया

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के एक प्रमुख सलाहकार महफूज आलम ने गुरुवार को नागरिकों से आग्रह किया कि वे “विनाशकारी” गतिविधियों को छोड़कर देश निर्माण की दिशा में काम करें। “हम सिर्फ इमारतों से नहीं लड़ रहे, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक वर्चस्व से लड़ रहे हैं। इसलिए सिर्फ मूर्तियां तोड़ने से कुछ नहीं होगा, हमें वैकल्पिक विचारधारा, शक्ति और प्रभाव का निर्माण करना होगा,” आलम ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा। उन्होंने कहा कि अवामी लीग या शेख हसीना महज़ “क्षेत्रीय प्रभुत्व के विस्तार” का हिस्सा थे और बांग्लादेश को एक नई दिशा में ले जाने के लिए मजबूत राज्य संस्थाओं और कुशल मानव संसाधनों की जरूरत है।

हसीना का निर्वासन और उनके पिता की विरासत

77 वर्षीय शेख हसीना पिछले साल 5 अगस्त को बड़े छात्र आंदोलनों के कारण सत्ता से बेदखल कर दी गई थीं और तब से वे भारत में निर्वासन में रह रही हैं। उनके पिता, शेख मुजीबुर रहमान को बांग्लादेश की आज़ादी का नायक माना जाता है, लेकिन हसीना के प्रति बढ़ते गुस्से ने उनकी विरासत पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। मुजीब को 15 अगस्त 1975 को सेना के कुछ जूनियर अधिकारियों ने एक तख्तापलट में मार दिया था। उस वक्त हसीना और उनकी बहन रिहाना जर्मनी में थीं। अब, बांग्लादेश के राजनीतिक हालात एक नए मोड़ पर खड़े हैं, जहां पुरानी सत्ता का पतन और नई व्यवस्था की शुरुआत हो रही है।

Related Articles

Back to top button