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गोधरा दंगों पर पीएम मोदी का बड़ा बयान, लेक्स फ्रीडमैन के पॉडकास्ट में दिया इंटरव्यू

पीएम मोदी ने गोधरा कांड पर की खुलकर बात, बताया ‘अकल्पनीय त्रासदी’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक मशहूर पॉडकास्ट में गोधरा कांड पर खुलकर बात की। उन्होंने इस घटना को ‘अकल्पनीय स्तर की त्रासदी’ बताया। पीएम मोदी ने कहा कि जब 27 फरवरी 2002 को यह घटना हुई, तब वे गुजरात विधानसभा में बजट सत्र के दौरान मौजूद थे। उस समय उन्हें मुख्यमंत्री बने सिर्फ तीन दिन हुए थे, जब अचानक यह भयावह घटना घटी।

‘गोधरा सबसे बड़ा दंगा नहीं’ – पीएम मोदी

अमेरिकी पॉडकास्टर और एआई रिसर्चर लेक्स फ्रिडमैन के साथ बातचीत में पीएम मोदी ने कहा कि हर कोई शांति चाहता है। गोधरा की घटना बेहद दुखद थी, जिसमें निर्दोष लोगों को जिंदा जलाया गया। हालांकि, उन्होंने इस धारणा को गलत बताया कि यह गुजरात का सबसे बड़ा दंगा था। पीएम मोदी ने कहा कि 2002 से पहले भी गुजरात में कई बड़े दंगे हो चुके थे। 1969 में तो दंगे करीब छह महीने तक चले थे, और 2002 से पहले 250 से ज्यादा बड़े दंगे गुजरात में हो चुके थे।

तत्कालीन केंद्र सरकार पर आरोप

पीएम मोदी ने कहा कि 2002 से पहले गुजरात में छोटी-छोटी बातों पर दंगे भड़क जाते थे। यहां तक कि पतंगबाजी की प्रतियोगिता या मामूली सड़क दुर्घटना पर भी सांप्रदायिक हिंसा फैल जाती थी। उन्होंने बिना किसी पार्टी का नाम लिए यह आरोप लगाया कि केंद्र में बैठे उनके राजनीतिक विरोधियों ने उनकी सरकार को घेरने की कोशिश की और उन पर झूठे आरोप लगाए। हालांकि, न्यायपालिका ने निष्पक्ष जांच के बाद उन्हें निर्दोष करार दिया।

2002 के बाद गुजरात में नहीं हुआ कोई बड़ा दंगा

पीएम मोदी ने जोर देकर कहा कि 2002 के बाद गुजरात में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ। उन्होंने इस बात पर गर्व जताया कि उनके शासन में गुजरात पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार का मंत्र “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास” है, और वे हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति से दूर रहे हैं।

क्या है गोधरा कांड?

27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे हिंदू कारसेवकों की ट्रेन को भीड़ ने आग के हवाले कर दिया, जिसमें 59 लोग मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इस घटना के बाद गुजरात में भयानक सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली गई। 2011 में एक विशेष अदालत ने इस मामले में 31 लोगों को दोषी ठहराया था। बाद में, 2014 में गुजरात हाई कोर्ट ने 11 दोषियों की सजा बरकरार रखी, जबकि 20 अन्य को बरी कर दिया।

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