
बांग्लादेश: ढाका में एक पुस्तक मेले में भगोड़ी बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन की किताबें प्रदर्शित होने पर हंगामा हो गया। प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने स्टॉल पर धावा बोल दिया, जिसके बाद बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने इस “अव्यवस्थित व्यवहार” की जांच के आदेश दिए। यह घटना सोमवार को अमर एकुशे पुस्तक मेले में सब्यसाची प्रकाशनी के स्टॉल पर हुई, जहां “तौहीदी जनता” नामक एक समूह ने तसलीमा नसरीन की किताबों के प्रदर्शन का विरोध करते हुए हंगामा कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने प्रकाशक को घेरकर नारेबाजी की, जिसके बाद पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। पुलिस ने सब्यसाची प्रकाशनी के प्रकाशक शताब्दी भोबो को अपने नियंत्रण कक्ष में ले जाकर माहौल शांत करने की कोशिश की। हालांकि, प्रदर्शनकारियों ने पुलिस कंट्रोल रूम को भी घेर लिया, जिससे तनाव बना रहा।
इस घटना की व्यापक आलोचना होने के बाद, मुख्य सलाहकार यूनुस ने अधिकारियों को आदेश दिया कि इस उपद्रव के लिए जिम्मेदार लोगों को न्याय के कठघरे में लाया जाए। उनके कार्यालय से जारी बयान में कहा गया, “इस तरह का अव्यवस्थित व्यवहार नागरिकों के अधिकारों और बांग्लादेश के कानूनों का उल्लंघन करता है।” बांग्ला अकादमी ने इस मामले की जांच के लिए सात सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जिसे तीन कार्य दिवसों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी। अकादमी ने इस घटना को “अवांछित” बताते हुए निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है। हंगामे के बाद से सब्यसाची प्रकाशनी का स्टॉल (संख्या 128) बंद है, हालांकि बांग्ला अकादमी ने स्पष्ट किया है कि उसने कोई स्टॉल बंद नहीं किया है और न ही किसी किताब पर प्रतिबंध लगाया है। इस बीच, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रभावशाली मंत्री और एंटी-डिस्क्रिमिनेशन स्टूडेंट्स मूवमेंट के प्रमुख नेता महफूज आलम ने कड़ी चेतावनी जारी की है। उन्होंने कहा कि भीड़ हिंसा में शामिल किसी भी व्यक्ति पर सख्त कानूनी कार्रवाई होगी।
महफूज ने “तौहीदी जनता” समूह को चेताया कि यदि वे हिंसक गतिविधियों में शामिल होते हैं, तो उन्हें कानून तोड़ने वालों की तरह ही कठोर दंड दिया जाएगा और कोई दूसरी चेतावनी नहीं दी जाएगी। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि कुछ लोग इस्लामिक पोशाक में स्टॉल के सामने इकट्ठा होकर वहां मौजूद व्यक्ति को माफी मांगने के लिए मजबूर कर रहे हैं। तसलीमा नसरीन को 1990 के दशक में उनके बेबाक लेखन के लिए अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली, लेकिन उनके कट्टरपंथ के खिलाफ लिखे गए विचारों ने धार्मिक रूढ़िवादियों को नाराज कर दिया। उनके खिलाफ फतवे तक जारी किए गए, जिससे उन्हें अपना देश छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। 1994 में निर्वासित होने के बाद से नसरीन यूरोप और अमेरिका में रहीं, और 2004 से वे भारत में रह रही हैं (2008-2010 को छोड़कर)। हालांकि, जुलाई 2024 में उनका भारत में रहने का परमिट समाप्त हो गया था, लेकिन अक्टूबर 2024 में इसे एक और साल के लिए बढ़ा दिया गया।