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अडानी केस में सेबी जांच पर सुप्रीम कोर्ट का रुख सख्त, याचिका खारिज

अडानी-हिंडनबर्ग मामला: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अडानी समूह और अमेरिकी फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट से जुड़े एक मामले में दाखिल याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा अडानी समूह के खिलाफ चल रही जांच के नतीजों को सार्वजनिक करने की मांग कर रही थी। कोर्ट ने 5 अगस्त 2024 को रजिस्ट्रार द्वारा दिए गए फैसले को सही ठहराते हुए इसी तरह की याचिका को खारिज करने के निर्णय को बरकरार रखा।

विशाल तिवारी की याचिका पर अपडेट

कानूनी विशेषज्ञ विशाल तिवारी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर सेबी को अडानी समूह और उसकी कंपनियों के खिलाफ चल रही जांच को जल्द पूरा करने का निर्देश देने की मांग की थी।
तिवारी इससे पहले भी एक याचिका दायर कर हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों की सीबीआई जांच की मांग कर चुके हैं।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट का असर

यह विवाद जनवरी 2023 में हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट से शुरू हुआ था। इसमें अडानी समूह पर स्टॉक हेरफेर, अकाउंटिंग फ्रॉड, मनी लॉन्ड्रिंग और फर्जी दस्तावेजों का इस्तेमाल करने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे।
अडानी समूह ने इन आरोपों को झूठा और बेबुनियाद बताते हुए सख्ती से खारिज किया। अगस्त 2024 में हिंडनबर्ग ने एक और रिपोर्ट जारी की, जिसमें सेबी प्रमुख माधबी पुरी बुच पर भी सवाल उठाए गए। रिपोर्ट में आरोप था कि बुच और उनके पति ने अडानी समूह से जुड़े ऑफशोर फंड्स में निवेश किया था। हालांकि, इन आरोपों को बुच और उनके पति ने स्पष्ट रूप से खारिज किया।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और मौजूदा स्थिति

सुप्रीम कोर्ट द्वारा याचिका खारिज होने के बाद अडानी-हिंडनबर्ग मामले का कानूनी विवाद एक नया मोड़ ले चुका है। यह मामला अब भारत में कॉर्पोरेट गवर्नेंस, नियामक पारदर्शिता और एजेंसियों की भूमिका को लेकर बड़ी बहस का हिस्सा बन गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र के सुधारों के लिए एक संकेत हो सकता है। साथ ही, नियामक संस्थाओं और न्यायपालिका को पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए और अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की जरूरत है।

अडानी समूह का रुख

अडानी समूह ने इन आरोपों को शुरुआत से ही खारिज करते हुए अपने बिजनेस मॉडल की वैधता पर भरोसा जताया है। अब जब मामला सुप्रीम कोर्ट और अन्य नियामक एजेंसियों के पास है, यह देखना दिलचस्प होगा कि यह विवाद भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र को किस दिशा में ले जाता है।

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