अंतराष्ट्रीय
Trending

एवरेस्ट चढ़ाई के दौरान पश्चिम बंगाल के पर्वतारोही की मौत – क्या शौक जान से बढ़कर हो सकता है?

एवरेस्ट का सपना, अधूरा सफर: सब्रता घोष की कहानी

यह कहानी है 45 वर्षीय सब्रता घोष की, जो पश्चिम बंगाल से एवरेस्ट फतह करने का सपना लेकर गए थे, लेकिन वापस नहीं आ पाए। उनका सपना अधूरा रह गया, एक ऐसी कहानी जो साहस और दुख दोनों से भरी है।

एवरेस्ट की चोटी पर विजय, लेकिन…

सब्रता ने अपने गाइड के साथ मिलकर एवरेस्ट की चोटी पर विजय प्राप्त की। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा पल था, एक ऐसा पल जिसकी उन्होंने हमेशा कल्पना की थी। लेकिन यह खुशी ज्यादा देर नहीं टिक पाई। चोटी से उतरते वक्त, ‘हिलेरी स्टेप’ नामक जगह पर, उन्हें हाई एल्टीट्यूड सिकनेस और अत्यधिक थकान ने घेर लिया। ऑक्सीजन की कमी और थकावट ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया, और इसी जगह उनकी मृत्यु हो गई। उनके गाइड की कोशिशों के बावजूद, उन्हें बचाया नहीं जा सका।

बेस कैंप में आई दुखद खबर

सब्रता के गाइड ने रात में कैंप IV तक पहुँचकर इस दुखद खबर को बताया। उनकी बॉडी को बेस कैंप तक लाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन ऊंचाई और मौसम की खराब स्थिति के कारण यह काम बेहद मुश्किल है। यह एक ऐसी घटना है जो हर किसी को झकझोर कर रख देती है।

एवरेस्ट की चुनौतियाँ और जोखिम

सब्रता घोष इस सीज़न में एवरेस्ट पर जान गंवाने वाले दूसरे विदेशी पर्वतारोही थे। इससे पहले भी कई पर्वतारोही एवरेस्ट की ऊँचाईयों पर अपनी जान गँवा चुके हैं। हालाँकि, 50 से ज़्यादा पर्वतारोही इस सीज़न में एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच चुके हैं, और 450 से ज़्यादा को परमिट मिले हैं। एवरेस्ट एक ऐसा सपना है जो कई लोगों को अपनी ओर खींचता है, लेकिन यह सपना उतना ही खतरनाक भी है।

जुनून और ज़िम्मेदारी का संतुलन

एवरेस्ट की चोटी पर पहुँचना एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन यह याद रखना ज़रूरी है कि यह सफर जानलेवा भी हो सकता है। सब्रता घोष की कहानी हमें याद दिलाती है कि सफलता के बाद भी वापसी की कोई गारंटी नहीं होती। पर्वतारोहण में जुनून के साथ-साथ ज़िम्मेदारी और समझदारी भी बहुत ज़रूरी है। आखिरकार, ज़िंदगी ही सबसे ऊँचा पर्वत है, और उसे संभाल कर रखना सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

Related Articles

Back to top button