
तमिल भाषा को नुकसान पहुंचाने की साजिश: स्टालिन
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने आरोप लगाया है कि बीजेपी सरकार जबरन तीन-भाषा नीति लागू कर तमिल भाषा और राज्य की समृद्ध संस्कृति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है। उन्होंने साफ किया कि अगर तमिलनाडु पर जबरदस्ती कोई भाषा थोपी गई, तो उनकी सरकार और डीएमके इसके खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है। स्टालिन ने हाल के दिनों में डीएमके समर्थकों द्वारा रेलवे स्टेशन और केंद्र सरकार के कार्यालयों के साइनबोर्ड से हिंदी अक्षरों को मिटाने को सही ठहराया और बीजेपी पर हिंदी को जबरदस्ती थोपने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, “तमिलनाडु में कुछ बीजेपी नेता यह सवाल उठा रहे हैं कि अगर स्टेशन के बोर्ड से हिंदी नाम हटा दिए जाएं तो उत्तर भारतीयों को नाम समझ में कैसे आएंगे। उनका यह तर्क हिंदी के प्रति उनकी अंधभक्ति को दर्शाता है। अगर उन्हें इतनी ही चिंता है, तो उन्हें तमिल भाषा के लिए भी इतनी ही फिक्र होनी चाहिए।” स्टालिन ने आगे कहा कि “जब तमिलनाडु के लोग उत्तर भारत जाते हैं, तो वहां के साइनबोर्ड पर तमिल नहीं लिखा होता। तब वे जैसे-तैसे नाम समझते हैं, उसी तरह उत्तर भारतीय भी समझ लेंगे।” उनके कहने का मतलब था कि यात्रियों को अंग्रेजी नामों से काम चलाना पड़ेगा, जैसे दक्षिण भारतीयों को उत्तर भारत में करना पड़ता है।
तमिलनाडु में हिंदी का विरोध कोई नई बात नहीं
तमिलनाडु में हिंदी का विरोध कोई नई बात नहीं है। 1937 में पहली बार हिंदी विरोधी आंदोलन हुआ था, तभी से प्रदर्शनकारियों ने हिंदी को थोपे जाने के विरोध में रेलवे स्टेशन, डाकघरों और अन्य सरकारी दफ्तरों के साइनबोर्ड से हिंदी मिटाने का तरीका अपनाया।
स्टालिन ने इतिहास की चर्चा करते हुए बताया कि 1930 के दशक से तमिलनाडु में हिंदी थोपने के खिलाफ जोरदार विरोध किया गया। जस्टिस पार्टी के नेता ए.एस. पन्नीरसेल्वम, तमिल विद्वान मराइमलाई अडिगल और द्रविड़ आंदोलन के जनक ई.वी.आर. पेरियार ने मिलकर सी. राजगोपालाचारी सरकार द्वारा स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किए जाने के फैसले का पुरजोर विरोध किया था। उन्होंने कहा, “बीजेपी सरकार की तीन-भाषा नीति लागू करने की मंशा स्पष्ट है – तमिल भाषा और तमिल संस्कृति को खत्म करना। तमिलनाडु हिंदी थोपे जाने का विरोध इसलिए करता है क्योंकि हमारे द्रविड़ आंदोलन के नेताओं ने लगभग 100 साल पहले ही इस लड़ाई की नींव रख दी थी।”
तमिलनाडु का दो-भाषा नीति पर अडिग रुख
स्टालिन का यह बयान तब आया है जब डीएमके सरकार और केंद्र सरकार के बीच राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) और तीन-भाषा नीति को लेकर टकराव चल रहा है। तमिलनाडु 1968 में ही दो-भाषा नीति अपना चुका है और हिंदी सीखने को अनावश्यक मानता है, क्योंकि अंग्रेजी वैश्विक स्तर पर संवाद के लिए पर्याप्त है। स्टालिन ने तमिल भाषा के अधिकारों को लेकर संघर्ष की चेतावनी देते हुए कहा, “अगर हम पर फिर से भाषा युद्ध थोपा गया, तो हमें उन लोगों के बलिदान को याद रखते हुए लड़ाई लड़नी होगी, जिन्होंने हमारी भाषा के लिए संघर्ष किया था। हमें राज्य के अधिकारों और भाषा के मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी।”