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अंग्रेज़ी से डर क्यों? तमिलनाडु का अमित शाह को जवाब – भाषा अधिकार है, न कि रुकावट

अंग्रेज़ी: अवसर की सीढ़ी या बराबरी का डर?

केंद्र सरकार के हालिया बयान के बाद तमिलनाडु में भाषा को लेकर बहस छिड़ गई है। क्या अंग्रेज़ी सीखना वाकई शर्म की बात है, जैसा कि कुछ लोगों का दावा है? आइए जानते हैं इस विवाद के दोनों पहलुओं को।

अंग्रेज़ी: विकास का साधन

तमिलनाडु सरकार का मानना है कि अंग्रेज़ी अब औपनिवेशिक शासन का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह विज्ञान, तकनीक और वैश्विक व्यापार में सफलता का जरिया है। दुनिया के कई देश, जिनमें चीन और जापान जैसे देश भी शामिल हैं, अंग्रेज़ी को महत्व देते हैं। इस भाषा का ज्ञान वैश्विक मंच पर आगे बढ़ने के लिए बेहद ज़रूरी है।

तमिल पहचान बनाए रखते हुए अंग्रेज़ी का उपयोग

DMK की नीति है कि तमिल भाषा अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखे, साथ ही अंग्रेज़ी भाषा सभी बच्चों को बेहतर अवसर दे। तमिलनाडु की शिक्षा प्रणाली में दोनों भाषाओं को बराबर महत्व दिया जाता है। भाषाओं को एक-दूसरे से अलग करने के बजाय, उन्हें अवसर के द्वार के रूप में देखा जाना चाहिए।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

AIADMK ने केंद्र सरकार के बयान को एक व्यक्तिगत राय बताया है, लेकिन साथ ही मातृभाषा के महत्व पर भी ज़ोर दिया है। हालांकि, उन्होंने राज्य सरकार की नीति की सीधी आलोचना करने से परहेज़ किया है।

दो भाषा नीति बनाम तीन भाषा नीति

तमिलनाडु सरकार लगातार दो भाषा नीति (तमिल और अंग्रेज़ी) का समर्थन करती रही है, और केंद्र सरकार की तीन भाषा नीति का विरोध करती है। यह बहस शिक्षा के ज़रिए नियंत्रण और शिक्षा के ज़रिए अवसर देने के बीच की लड़ाई बन गई है। सरकार का मानना है कि अंग्रेज़ी को सीमित करना लोगों को सीमित करना है।

निष्कर्ष

यह बहस भाषा के महत्व और शिक्षा के उद्देश्य पर गंभीर सवाल उठाती है। क्या शिक्षा का उद्देश्य केवल एक विशेष समूह को आगे बढ़ाना है या सभी के लिए समान अवसर प्रदान करना है? यह एक ऐसा सवाल है जिस पर विचार करने की ज़रूरत है।

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