क्या सोशल मीडिया से दूर होंगे छोटे बच्चे? सुप्रीम कोर्ट ने टाल दी याचिका, सरकार पर छोड़ा फैसला

सोशल मीडिया पर बच्चों की मौजूदगी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का जवाब – ये संसद का काम है, कानून बनाए सरकार
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका पर सुनवाई करने से मना कर दिया जिसमें 13 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि ये मामला नीति बनाने का है और इस पर फैसला लेना संसद और सरकार का काम है, न कि अदालत का। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने याचिकाकर्ता को ये जरूर कहा कि वो चाहें तो अपनी बात सरकार या संबंधित अधिकारियों के सामने रख सकते हैं, लेकिन अदालत खुद इस मसले में दखल नहीं देगी।
बच्चों के मानसिक हालात पर असर की बात
इस याचिका में कहा गया कि सोशल मीडिया का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर काफी बुरा असर पड़ रहा है। खासकर बहुत छोटे बच्चों पर इसका असर और भी गहरा है। इसमें ये मांग की गई थी कि बच्चों की उम्र की सख्ती से जांच हो, जिसके लिए बायोमेट्रिक पहचान जैसी व्यवस्था लागू की जाए। याचिका लगाने वाली वकील मोहिनी प्रिया ने कोर्ट में बताया कि आजकल बच्चों को डिप्रेशन, अकेलापन और यहां तक कि आत्महत्या जैसे खतरों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि ये सिर्फ माता-पिता की निगरानी से नहीं रोका जा सकता, इसके लिए कड़े कानून बनाना ज़रूरी है।
भारत में सोशल मीडिया का बढ़ता असर
याचिका में यह भी बताया गया कि भारत में फिलहाल करीब 46.2 करोड़ लोग सोशल मीडिया इस्तेमाल कर रहे हैं, और इनमें बड़ी संख्या में बच्चे शामिल हैं। एक रिसर्च का हवाला देते हुए कहा गया कि महाराष्ट्र में 17% बच्चे हर दिन 6 घंटे या उससे ज्यादा वक्त सोशल मीडिया और गेमिंग पर बिता रहे हैं, जो चिंता की बात है। याचिका में ये भी कहा गया कि सोशल मीडिया कंपनियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके प्लेटफॉर्म पर बच्चों को हिंसक या मानसिक नुकसान पहुंचाने वाली सामग्री न मिले। इसके लिए नई और सख्त गाइडलाइंस बनाने की जरूरत है।
कोर्ट ने सरकार को फैसला लेने की छूट दी
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता को यह सुझाव दिया कि वह चाहे तो सरकार को अपनी मांगें भेज सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता सरकार के पास कोई प्रस्ताव भेजता है, तो सरकार को 8 हफ्ते के अंदर इस पर कोई न कोई निर्णय लेना होगा। अब सवाल सरकार और सोशल मीडिया कंपनियों के सामने है कि वे मिलकर बच्चों को एक सुरक्षित और सेहतमंद डिजिटल माहौल कैसे दे सकते हैं।