पहलगाम हमले पर सवालों की बौछार: अभिषेक बनर्जी ने सरकार से मांगा जवाब, उठाए 5 अहम मुद्दे

पहलगाम हमला: 55 दिन बाद भी सवालों के जवाब नहीं
यह सवाल अब ज़रूरी हो गया है कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से 55 दिन बीत चुके हैं, लेकिन सरकार की तरफ से कोई ठोस जवाब नहीं आया है। TMC सांसद अभिषेक बनर्जी ने केंद्र सरकार से पांच अहम सवाल पूछे हैं, जिनसे देश की सुरक्षा और विदेश नीति से जुड़े कई सवाल उठते हैं।
सीमा पर चूक या लापरवाही?
चार आतंकियों के भारतीय सीमा में घुसपैठ और 26 निर्दोष लोगों की हत्या ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं। क्या हमारी सीमा सुरक्षा में कोई कमी है? क्या आतंकियों की घुसपैठ की जानकारी पहले से ही थी? क्या इस घटना के लिए कोई ज़िम्मेदार है या सब कुछ बस समय के भरोसे छोड़ दिया गया है? ये सवाल बेहद अहम हैं और इनके जवाब जनता को जानने का पूरा हक़ है।
खुफिया विफलता के बाद इनाम?
अगर पहलगाम हमला खुफिया विफलता है, तो फिर IB प्रमुख को एक साल का सेवा विस्तार क्यों दिया गया? क्या गलती पर जवाबदेही तय करने की जगह इनाम देना सही है? क्या इस फैसले के पीछे कोई मजबूरी है या ये सिर्फ़ एक राजनीतिक फ़ैसला है? इस सवाल का जवाब जनता को जानने का अधिकार है।
Pegasus हमारे लिए, आतंकियों के लिए नहीं?
सरकार विपक्षी नेताओं, पत्रकारों और जजों पर जासूसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन आतंकी नेटवर्क पर ये तकनीक क्यों नहीं अपनाई जाती? क्या सरकार की प्राथमिकता आलोचनाओं को रोकना है या आतंकवाद से लड़ना? इस दोहरे रवैये पर सवाल उठना लाज़िमी है।
हमलावर जिंदा हैं या मारे गए?
पहलगाम हमले के आतंकवादी कहाँ हैं? क्या वे मारे गए हैं या अभी भी जीवित हैं? अगर वे मारे गए हैं, तो सरकार ने आधिकारिक बयान क्यों नहीं दिया? अगर वे जीवित हैं, तो इस चुप्पी का क्या मतलब है? जनता को सच्चाई जानने का हक़ है।
PoJK, वैश्विक चुप्पी और पाकिस्तान को ‘इनाम’
PoJK पर भारत की रणनीति क्या है? क्या अमेरिका ने वाकई व्यापार के बदले संघर्षविराम के लिए भारत पर दबाव बनाया? IMF और वर्ल्ड बैंक ने पाकिस्तान को इतना पैसा क्यों दिया? भारत को दुनिया से खुला समर्थन क्यों नहीं मिला? और UN में पाकिस्तान को आतंकवाद समिति का उपाध्यक्ष बनाना कितना तार्किक है?
2 लाख करोड़ का हिसाब
पिछले 10 वर्षों में विदेश मामलों पर 2 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च किए गए हैं। इसका क्या नतीजा मिला? देश को जवाब चाहिए, सिर्फ़ चुप्पी या राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं। जनता को पारदर्शिता, जवाबदेही और ठोस नतीजे चाहिए।