क्या राज्य सरकारें अब आज़ाद नहीं? स्टालिन बोले- केंद्र सरकार संविधान को तोड़ने की कर रही है कोशिश

स्टालिन का केंद्र सरकार पर तूफानी हमला: क्या लोकतंत्र खतरे में?
एक नज़र में: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर राज्य सरकारों को कमज़ोर करने की साज़िश रचने का आरोप लगाया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की अपील को संविधान पर सीधा हमला बताया है और सभी विपक्षी दलों से समर्थन माँगा है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और राष्ट्रपति का सवाल
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के 10 अटके हुए बिलों को मंज़ूरी दी। इसके बाद राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा कि क्या कोर्ट राज्यपाल और राष्ट्रपति के कामकाज के लिए समय सीमा तय कर सकता है? स्टालिन का मानना है कि यह केंद्र सरकार का संवैधानिक प्रक्रियाओं को कमज़ोर करने का प्रयास है, जिससे राज्य सरकारों की स्वायत्तता खतरे में पड़ सकती है। यह मामला अब संविधान की व्याख्या और राज्य सरकारों के अधिकारों पर बहस का केंद्र बन गया है।
‘संविधान की आत्मा’ पर हमला?
स्टालिन ने राष्ट्रपति के सवाल को संविधान के मूल ढाँचे पर हमला बताया है। उनका कहना है कि इससे राज्य विधानसभाओं की शक्ति कमज़ोर होगी। उन्होंने इस मुद्दे को सिर्फ़ कानूनी लड़ाई नहीं, बल्कि देश की संघीय व्यवस्था को बचाने की लड़ाई बताया है। यह बयान राजनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है और यह दर्शाता है कि यह विवाद अब सिर्फ़ तमिलनाडु तक सीमित नहीं है।
क्या बीजेपी राज्यपालों का इस्तेमाल कर रही है?
स्टालिन ने सवाल उठाया है कि अगर राज्यपाल बिलों को लंबित रखते हैं तो क्या कोर्ट समय सीमा नहीं तय कर सकता? उन्होंने आरोप लगाया कि तमिलनाडु के राज्यपाल बीजेपी के इशारों पर काम कर रहे हैं और जानबूझकर बिलों को रोका जा रहा है। यह आरोप केंद्र और राज्य के रिश्तों पर गंभीर सवाल उठाता है और राजनीतिक तनाव को बढ़ा सकता है।
जनता का जनादेश सर्वोच्च?
स्टालिन का कहना है कि केंद्र सरकार राज्यपालों का इस्तेमाल राज्य सरकारों के काम में बाधा डालने के लिए कर रही है। उन्होंने इसे जनता के जनादेश का अपमान बताया है और कहा है कि यह लोकतंत्र को कमज़ोर करने की कोशिश है। यह बयान लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक प्रक्रियाओं के महत्व पर ज़ोर देता है।
सिर्फ़ तमिलनाडु का मामला नहीं
यह मुद्दा अब सिर्फ़ तमिलनाडु तक सीमित नहीं है। अगर केंद्र सरकार राज्यपालों के ज़रिए संवैधानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार करती है, तो यह हर राज्य की स्वायत्तता को प्रभावित कर सकता है। स्टालिन के सवाल देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर चेतावनी हैं। अब देखना होगा कि अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं।