मोदी सरकार की चुप्पी पर दिग्विजय सिंह का सवाल – क्या भारत ने तीसरे पक्ष की मध्यस्थता मान ली है?

दिग्विजय सिंह का सवाल: क्या मोदी सरकार भी बुलाएगी विशेष सत्र?
यह लेख कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के हालिया बयानों पर केंद्रित है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार से पाकिस्तान के साथ हाल के तनावों पर संसद का विशेष सत्र बुलाने का आग्रह किया है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया है कि क्या भारत ने किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया है।
नेहरू की मिसाल और मोदी सरकार की चुप्पी
दिग्विजय सिंह ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान जवाहरलाल नेहरू द्वारा बुलाए गए विशेष संसद सत्र का उदाहरण दिया। उन्होंने तर्क दिया कि उसी तरह आज भी, जब सीमा पर तनाव है, सरकार को सभी दलों को विश्वास में लेकर एक विशेष सत्र बुलाना चाहिए। उनका मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी देश के लिए चिंता का विषय है और इससे जनता में असंतोष बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि देश को यह जानने का हक है कि भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए समझौते में क्या शर्तें रखी गई हैं। यह पारदर्शिता और जनता के साथ खुलकर बात करने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, जो किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए अहम है। ऐसे गंभीर मुद्दों पर सरकार की चुप्पी जनता के विश्वास को कम करती है और अटकलों को बढ़ावा देती है।
अमेरिका की भूमिका और कश्मीर मुद्दा
लेख में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के भारत-पाकिस्तान सीज़फायर की घोषणा पर दिए गए बयान पर भी चर्चा की गई है। दिग्विजय सिंह ने ट्रम्प के बयान की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया और कहा कि भारत को किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करना चाहिए, खासकर कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दे पर। उन्होंने जोर देकर कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इस पर केवल भारत का अधिकार है। उन्होंने कश्मीर के विलय के ऐतिहासिक तथ्यों को याद दिलाते हुए कहा कि यह मुद्दा भारत के आंतरिक मामलों से जुड़ा है और किसी बाहरी हस्तक्षेप को स्वीकार नहीं किया जा सकता। इस मुद्दे पर सरकार की प्रतिक्रिया की कमी से देश की कूटनीतिक स्थिति कमज़ोर हो सकती है और अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भ्रम पैदा हो सकता है।
संसद और विपक्ष को अंधेरे में रखना क्यों उचित नहीं?
लेख के अंत में, दिग्विजय सिंह ने सरकार से अपील की कि पाकिस्तान के साथ किसी भी समझौते या बातचीत के बारे में संसद और विपक्ष को पूरी जानकारी दी जाए। उनका मानना है कि इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और देश की एकता मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि समझौते में क्या शर्तें रखी गई हैं और आगे की रणनीति क्या है। यह बात पूरी तरह से सही है, क्योंकि जनता को सरकार के फैसलों में शामिल होना चाहिए और सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। यह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के अनुकूल है।