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सियासी खींचतान में दबे जनता के मुद्दे, J&K विधानसभा में अनुच्छेद 370 बना केंद्र बिंदु

जम्मू-कश्मीर की राजनीति में तकरार, जनता के मुद्दों से भटक रही बहस

जम्मू-कश्मीर की सियासत में इन दिनों खींचतान तेज हो गई है। विधानसभा में जनता से जुड़े अहम मुद्दों पर चर्चा होने के बजाय पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में उलझी हुई हैं। बेरोजगारी, बुनियादी ढांचे का विकास और पर्यावरणीय चिंताओं जैसे जरूरी विषयों पर चर्चा से ज्यादा, अनुच्छेद 370 की बहाली और राज्य का दर्जा वापस देने को लेकर बहस छाई रही।

पहले ही दिन अनुच्छेद 370 पर गरमाई बहस
जम्मू-कश्मीर के बजट सत्र के पहले ही दिन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 पर बयान देते हुए कहा कि इस मुद्दे पर कोई नया प्रस्ताव लाने की जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि विधानसभा ने पिछले साल पहले ही इसे बहाल करने का प्रस्ताव पारित किया था, जिसे केंद्र सरकार ने अस्वीकार नहीं किया। इसी बीच, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के एकमात्र विधायक सज्जाद लोन ने अनुच्छेद 370 की बहाली, पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) को हटाने और 1987 के विधानसभा चुनावों में कथित धांधली की जांच से जुड़े संशोधन पेश किए। लेकिन स्पीकर अब्दुल रहीम राठर ने प्रक्रिया से जुड़े कारणों का हवाला देते हुए इन संशोधनों को खारिज कर दिया, जिससे नाराज होकर लोन ने सदन से वॉकआउट कर दिया।

बीजेपी और एनसी के बीच तीखी नोकझोंक
बीजेपी विधायक और नेता प्रतिपक्ष सुनील शर्मा ने अनुच्छेद 370 पर चर्चा को “बेमतलब” करार दिया। उन्होंने कहा, “अनुच्छेद 370 अब इतिहास बन चुका है, इसे दोबारा बहाल करने की बात करना जनता को गुमराह करना है।” वहीं, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) की मंत्री सकीना इतू ने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) पर निशाना साधते हुए कहा कि “अनुच्छेद 370 हटने और राज्य का दर्जा खत्म होने के लिए PDP ही जिम्मेदार है। उन्होंने जनता के साथ धोखा किया।” इसके जवाब में PDP विधायक वहीद पारा ने NC पर पलटवार करते हुए कहा कि उमर अब्दुल्ला की सरकार द्वारा पेश किए गए सरकारी दस्तावेज़ पार्टी की मूल विचारधारा से मेल नहीं खाते। उन्होंने आरोप लगाया कि, “इसमें NC के मूल एजेंडे का कोई जिक्र नहीं है, इसलिए बीजेपी इसे सराह रही है। उन्हें यह NC का नहीं बल्कि अपना ही घोषणापत्र लग रहा है।”

जनता के मुद्दे हुए गायब, बढ़ रही नाराजगी
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नेताओं की इस बयानबाजी में जनता से जुड़े असल मुद्दे गायब हो रहे हैं, जिससे लोगों में नाराजगी बढ़ रही है। श्रीनगर स्थित थिंक-टैंक J&K पॉलिसी इंस्टीट्यूट के प्रमुख जाविद ट्राली ने कहा, “इस बहस से जनता को कुछ फायदा नहीं हो रहा, सिर्फ सियासी तकरार हो रही है। बेरोजगारी चरम पर है, विकास कार्य ठप पड़े हैं और आम आदमी की आवाज इस राजनीतिक खींचतान में दबकर रह गई है।”

अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया था, जिससे घाटी में बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन हुए। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, जहां दिसंबर 2023 में कोर्ट ने इसे “अस्थायी प्रावधान” करार देते हुए रद्द करने के फैसले को सही ठहराया। अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की विशेष पहचान खत्म हो गई और इसे लद्दाख के साथ दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया। पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में अनुच्छेद 370 और राज्य के दर्जे की बहाली बड़ा मुद्दा रहा था।

राजनीतिक माहौल गर्म, जनता के मुद्दे पीछे
कुल मिलाकर, जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है, लेकिन जनता के असली मुद्दों की अनदेखी हो रही है। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जारी इस सियासी जंग में लोगों की परेशानियों पर कोई ठोस चर्चा होती नहीं दिख रही।

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