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राजनीति में पलटा! एस. रामदास ने बेटे अंबुमणि को हटाया, PMK की बागडोर खुद संभाली

PMK में बड़ा उलटफेर: रामदास ने बेटे को हटाकर खुद संभाली कमान, अंबुमणि अब वर्किंग प्रेसिडेंट पट्टाली मक्कल कच्ची (PMK) के संस्थापक एस. रामदास ने गुरुवार को बड़ा राजनीतिक कदम उठाते हुए अपने बेटे अंबुमणि रामदास को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया और खुद इस जिम्मेदारी को संभाल लिया। अंबुमणि, जो कि पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी रह चुके हैं, अब पार्टी के वर्किंग प्रेसिडेंट की भूमिका में रहेंगे। PMK तमिलनाडु के उत्तर और मध्य हिस्सों में फैले वन्नियार समुदाय में खासा असर रखती है। 85 साल के एस. रामदास ने विलुप्पुरम जिले के थाईलापुरम स्थित अपने घर में पत्रकारों से बातचीत में कहा, “पार्टी के संस्थापक के तौर पर मैंने फैसला लिया है कि अब मैं ही पार्टी अध्यक्ष की भूमिका भी निभाऊंगा। अंबुमणि ने पार्टी के लिए मेहनत की है, वो अब वर्किंग प्रेसिडेंट रहेंगे।” रामदास का यह फैसला उस घटना के लगभग चार महीने बाद आया है, जब 28 दिसंबर 2024 को पुडुचेरी में हुई पार्टी की स्पेशल जनरल काउंसिल मीटिंग में पिता-पुत्र के बीच पार्टी को लेकर मतभेद खुलेआम सामने आ गए थे।

राज्य के वरिष्ठतम नेताओं में से एक माने जाने वाले रामदास, बीते कुछ सालों से पार्टी के बीजेपी के करीब जाने से नाराज़ बताए जाते हैं। उनका मानना है कि PMK को अपनी असली पहचान यानी वन्नियार समुदाय के हितों की आवाज़ उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिए और अगर ज़रूरत हो तो सिर्फ द्रविड़ पार्टियों से ही गठजोड़ करना चाहिए। यह फैसला ऐसे समय आया है जब अंबुमणि का राज्यसभा कार्यकाल खत्म होने वाला है और उसी दिन गृह मंत्री अमित शाह भी तमिलनाडु के दो दिन के दौरे पर आने वाले थे। PMK, जो पहले वन्नियार समुदाय में बहुत मजबूत पकड़ रखती थी, पिछले कुछ समय से इस आधार को भी खोती दिख रही है। हालांकि अब भी पार्टी का लगभग 5% वोट बैंक माना जाता है। ये पार्टी पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार और बाद में UPA-I का भी हिस्सा रह चुकी है। मंगलवार की इस घटना के बाद सियासी गलियारों में ये अटकलें तेज़ हो गईं कि क्या पार्टी टूट की ओर बढ़ रही है। बीते कुछ महीनों से खबरें आ रही थीं कि रामदास और उनके बेटे के बीच पार्टी को कैसे चलाया जाए, इस पर गंभीर मतभेद हैं। माना जा रहा है कि रामदास AIADMK के साथ गठबंधन के पक्ष में थे, जबकि अंबुमणि ने 2024 के चुनावों के लिए बीजेपी से हाथ मिलाने पर ज़ोर दिया और आखिरकार वही गठबंधन हुआ। 1989 में वन्नियार समुदाय के हक के लिए बनी PMK, दशकों तक DMK और AIADMK के बीच झूलती रही और 2016 में अकेले चुनाव लड़ने का प्रयोग असफल रहने के बाद अब बीजेपी के साथ है।

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